एक गांव में एक व्यक्ति परचूनी दुकान करता था।उसके सामने हीं एक हलवाई की दुकान भी थी।दोनों की दुकाने आमने -सामने थी।इन दोनो मे परचूनी तो ईमानदारी से धॆमपूवॆक सोदा बेचता था ओर हलवाई दूध मे पानी मिलाकर बेईमानी ओर अधॆमपूवॆक व्यवहार करता था । थोड़े ही दिनों में हलवाई मालदार हो गया और परचूनी
गरीब बना रहा | परचूनी इस विषय में पंडितों से प्रश्न किया करता था " धन कैसे होता है ?' इसका यह उत्तर 'धर्म से ही धन होता है' उसकी समझ में नहीं आता था क्योंकि उसका पड़ोसी हलवाई अधर्म करते ही मालदार हुआ था 1 दिन व्रत महात्मा आए उनसे भी परचूनी ने यही प्रश्न किया, महात्मा चुप हो गए और वही रहने लगे, कुछ दिन पीछे बोले तुम 'गंगा स्नान को चलो' वहां पहुंचकर महात्मा ने गंगा -किनारे एक गड्ढा आदमी की ऊंचाई तक तैयार कराया और परचूनी से उसके भीतर खड़ा होने को कहा | उसके खड़े हो जाने पर वे दूसरे आदमियों के द्वारा उस गड्ढे में जल डलवाने लगे
100 घड़े जल डालने पर परचूनी की गर्दन तक जल आ गया इस परचूनी बोला कि अब यदि 2 घड़े
और डलवाए तो मैं मर जाऊंगा महात्मा बोले - यदि तू
100 घड़ा पानी डालने से नहीं मरा तो अब 2 घड़ा पानी डलवाने से कैसे मर जाएगा? |
फिर उपदेश किया कि इस जल की तरह जब तक पाप मनुष्य के कंठ तक रहता है तब तक पता नहीं चलता , जब आगे बढ़ने लगता है और दम घुटने लगता है
तभी उसका दुष्परिणाम जान पड़ता है इसी प्रकार जब
अधर्मऔपारजीत संपत्ति को चोर चुरा लेते हैं , अग्नि भस्म कर देती है अथवा रोग या मुकदमे बाजी उसे समाप्त कर देती है , तभी उसका दुष्परिणाम मालूम पड़ता है वास्तव में तो धर्म से ही धन की रक्षा होती है
धर्म से ही धन की रक्षा होती है