हमारो दान देहो गुजरेटी।

हमारो दान देहो गुजरेटी। बहुत दिनन चोरी दधि बेच्यो आज अचानक भेटी॥ अति सतरात कहा धों करेगी बडे गोप की बेटी। कुंभनदास प्रभु गोवर्धनध्र भुज ओढनी लपेटी॥ एक समय परासोली में कुंभन दास जी खेत ऊपर बैठे हते, और श्री गोवर्धन नाथ जी कुंभन दासजी के आगे खेत में खेलत हते । इतने में उत्थापन को समय भयो तब कुंभन दासजी उठिके श्री गिरिराज चलवे को कियो । तब श्री नाथजी ने कुंभन दास जी सो कही, जो - तू कहां जात है ? सो तब इन ने कही, जो - उत्थापन को समय भयो है, सो गिरिराज ऊपर श्री गोवर्धननाथजी के दर्शन को जात हों । तब श्री गोवर्धननाथ जी कहे, जो-में तो तिहारे पास खेलत हों , तासो तू उहां क्यों जात है ? तब कुंभन दासजी ने कही, जो -महाराज ! यहाँ तुम खेलत हो और दर्शन देत हो सो तो अपनी और ते कृपा करिके, और अब ही तुम भाजि जाव तो मेरी तुमसो कछु चले नाहीं । और मंदिर में तो श्री आचार्यजी महाप्रभुन के पधराये हो सो उहां सो कहूं जावो नाहीं, और उहां सबकों दर्शन देत हो । और मंदिर में दर्शन की आसक्ति जो मोकों है, सो तासों तुम घर बैठेहू मोकों कृपा करी दर्शन देत हो । या समय तुम कृपा करी दर्शन दे अनुभव जतावत हो, सो मंदिर की सेवा और दर्शन के प्रताप सों । तासों उहां गए बिना न चले । तब श्री गोवर्धन नाथजी हँसिके कहे, जो - कुंभन दास !! तेरो भाव महा अलौकीक है तासों मैं तोकों एक छीन नाहीं छोड़त हों । ता पाछें श्री नाथजी और कुंभन दासजी परासोली सो संग चले । सो गोविंद कुंड उपर आये तब शंखनाद भये । तब श्री गोवर्धन नाथजी मंदिर आये, और और कुंभन दासजी आन्योर ताई संग आये । सो तहां पर्वत ऊपर आप चढ़ी मंदिर में श्री गोवर्धन नाथजी के दर्शन किये । सो कुंभन दासजी ऐसे भगवदीय हते ।।