*जीवन में सदाचरण है तो कोरोना से डर क्यों?

                                                                                                                                                                                                                                                                         *विजयते श्रीमन्मथुराधीशप्रभु:*


*जीवन में सदाचरण है तो कोरोना से डर क्यों?
अगर आप पुष्टिमार्गीय हैं तो कोरोना से फिर भय कैसा?*


सम्पूर्ण विश्व में भय व्याप्त है, समस्त विश्व एक भयानक परिस्थिति से गुजर रहा है, सबके संगठित प्रयासों से अवश्य जल्दी ही विश्व में सुखमयी शान्ति स्थापित होगी, लेकिन यह भय स्वयं मानव निर्मित ही है अगर हम प्रकृति के स्वाभाविक नियम से जीवन जीते तो कभी ऐसी भयावह परिस्थिति नहीं आती, परन्तु अब भय सामने ही है तो भयभीत होने की जरूरत नहीं हैं यह समय कोरोना जैसे भय पर अभय होकर प्रहार करने का समय है शास्त्र हमें भय से लड़ना इस प्रकार सिखाते हैं कि- तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् ।
आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अभीतवत् ॥
भय से तब तक ही डरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो, आये हुए भय को देखकर बिना भय के उस पर प्रहार करना चाहिये । 
तो आइए हम सब मिलकर इस विश्व व्यापी कोरोना वायरस के भय पर समझदारी से प्रहार करें, हमारी समझदारी इस समय यह है कि इस भय के आने का हम कारण ढूढें कि यह कोरोना आया ही क्यों, इसके विश्व में व्याप्त होने का एकमात्र कारण हैं कि हम प्रकृति के नियमों से खिलवाड़ कर रहे हैं, अभक्ष्य भक्षण आदि के कारण एवं हम शास्त्रों के द्वारा बताये गए सदाचार धर्म से बहुत दूर हो गए हैं, *आचार: परमो धर्म:* हमारे जीवन का यह प्रथम सूत्र है कि जीवन में सदाचरण का पालन करना, इसी आचरण का पुष्टिसम्प्रदाय में अक्षरश: पालन किया जाता रहा है, तन की शुद्धि और मन की शुद्धि सदाचार का प्रथम चरण है, *पुष्टिमार्ग* में हम इस आचरण को *अपरस(अस्पर्श)* के नाम से जानते हैं।


तो आइये पुष्टिसम्प्रदाय की दृष्टि से हम कोरोना से सुरक्षा का उपाय देखते हैं अगर सभी वैष्णवजन पुष्टिमार्गीय सिद्धांतो का पालन करते हैं तो स्वत: आपकी कोरोना से सुरक्षा है यथा- जिसप्रकार आज कल घर में रहने का ही सुझाव दिया जा रहा है तो श्रीवल्लभाचार्य आज्ञा कर रहे हैं " गृहे स्थित्वा स्वधर्मत:" घर में ही स्वधर्माचरण पूर्वक भगवत्सेवा करें, पुष्टिसम्प्रदाय के संस्थापक श्रीवल्लभाचार्यचरण की आज्ञा है "कृष्ण सेवा सदा कार्या"(सिद्धान्तमुक्तावली) श्रीकृष्ण की सेवा सदा करें, किन्तु कृष्ण सेवा के लिए देह शुद्धि बहुत जरूरी है अतः श्रीवल्लभाचार्य चरण के ज्येष्ठ आत्मज श्रीगोपीनाथ जी इस विषय में आज के संदर्भ में ही आज्ञा कर रहे हैं जिससे हमें कोरोना वायरस के बचाव के लिये भी सावधानी पूर्वक पालन करना चाहिए, पुरानी आज्ञाएं आज के इस वातावरण में कितनी सटीक बैठती हैं, वह आज्ञा इस प्रकार है- *देहशुद्धि: सदा कार्या कर शुद्धि: विशेषत:*(साधनदीपिका६३)"सावधानतया वारं वारं कर प्रक्षालनं करणीयम्" वैष्णवजन को देह शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए उसमें भी विशेष रूप से कर शुद्धि का ध्यान रखें हाथ वारम्बार धोते रहें, आज WHO के कोरोना से बचाव के निर्देशो में हाथ अच्छी तरह से धोना यह मुख्य निर्देश है, इसीप्रकार प्रभु को भोग धर के ही प्रसादि ग्रहण करें कोरोना में घर का पौष्टिक भोजन ही ग्रहण करें, किसी भी रोग से लड़ने के लिए अपनी रोग प्रतिरोधक शक्ति सशक्त होनी चाहिए जब हमारा मन प्रसन्न होता है तो शरीर की इम्यून पावर बढ़ती है इसमें पौष्टिक भोजन के साथ मन का प्रसन्न रहना बहुत जरूरी है अतः थिंक पॉजिटिव हमेशा सकारात्मक विचार करें हमारे यहाँ सकारात्मक विचार के लिए सतत अष्टाक्षर मन्त्र का जप करें वैष्णव के लिये इससे ज्यादा सकारात्मकता और कहाँ प्रभु नाम से आनन्द की प्राप्ति होगी तो मन प्रसन्न होगा और मन स्वस्थ तो तन स्वस्थ, हमारे यहाँ दूर से ही भगवत्स्मरण जय श्रीकृष्ण नमस्कार आदि करने का प्रचलन है सेवा में अस्पर्श अर्थात् प्रभु के अलावा किसी का भी स्पर्श नहीं करना, वही अस्पर्श भाषा में अपभ्रंश हो जाने से वर्तमान में अपरस कहा जाता है, पुष्टिमार्ग एक स्वस्थ जीवन जीने की कला सिखाता है, अतः अपरस आदि का ध्यान रखें अच्छी तरह से बार बार हाथ धोवें अनावश्यक बाहर न निकलें घर का पौष्टिक भोजन करें और भयभीत न हो सुरक्षित रहें सदा आनन्दित रहें श्रीमन्मथुराधीश प्रभु की कृपा से जल्दी ही सर्वत्र आनन्द होगा ।
हम सम्पूर्ण विश्व के लिए एवं विशेषत: अपनी भारत भूमि के लिये प्रार्थना करते हैं कि शीघ्र ही सर्वत्र आनन्द का प्रसार हो कोरोना का भय शीघ्र समाप्त हो। 
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:। किमधिकम् 


गोस्वामी 
मिलनकुमार
शुद्धाद्वैत प्रथमपीठ (कोटा)