मनुष्यता ही सदैव परोन्मुखी होती है

एक विशाल मंदिर था | उसके प्रधान पुजारी की मृत्यु के बाद मंदिर के प्रबंधक ने नये पुजारी की नियुक्ति के लिए घोषणा कराई और शर्त रखी जो कल सवेरे मंदिर में आकर पूजाविषयक ज्ञान में अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करेगा , उसे पुजारी रखा जाएगा | यह घोषणा सुनकर अनेक पुजारी मंदिर के लिए चल पडे | मंदिर पहाड़ी पर था और पहुंचने का रास्ता पत्थरों और कांटों से भरा हुआ था| मार्ग की इन जटिलताओं से किसी प्रकार बचकर यह सभी मंदिर पहुंच गए | प्रबंधक ने सभी से कुछ मंत्र और प्रश्न पूछे | जब परीक्षा समाप्त होने को थी , तभी एक युवा पुजारी वहां आया| वहां पसीने से लथपथ था और कपड़े भी फट गए थे | प्रबंधक ने देरी का कारण पूछा तो वह बोला - घर से तो बहुत जल्दी चला था , किंतु मंदिर के रास्ते में बहुत कांटे और पत्थर देखें तो उन्हें हटाने लगा , ताकि यात्रियों को कष्ट ना हो इसी में देरी हो गई | प्रबंधक ने उससे पूजा की विधि और कुछ मंत्र पूछे तो उसने बता दिए | प्रबंधक ने कहा - तुम ही इस मंदिर के आज से पुजारी हो|
यह सुनकर अन्य पुजारी बोले -´ पूजा की विधि और मंत्रों का हमें भी ज्ञान है | फिर इसे ही क्यों पुजारी बनाया जा रहा है? इसमें ऐसा कौन सा विशेष गुण है , जो हम सब में नहीं हैं ?
प्रबंधक ने कहा -´ ज्ञान और अनुभव व्यक्तिगत होते हैं , जबकि मनुष्यता सदैव परोन्मुखी होती है | अपने स्वार्थ की बात तो पशु भी जानते हैं परंतु सच्चा मनुष्य वह है , जो दूसरों के लिए अपना सुख छोड़ दे | इस युवक ने यही किया है | इसलिए यही सच्चा पुजारी है|`
प्रबंधक की इस बात से पुजारियों को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया