प्रकटे पुष्टि महारस देन||

प्रकटे पुष्टि महारस देन|| श्रीवल्लभ हरि भाब अति मुखरूप समर्पित लैंन||1|| नित्यसंबंध कराय, बिरह अलौकिक बैंन || यह प्राकट्य प्राकट्य रहत ह्रदय में, तीन लोक भेदन को जैन||2|| रहि सदा इनके पद, पातक कोऊ लगे न || ' रसिक' यह निराधार निगमगति साधन और नहै न ||3||



नि.लि. गोस्वामी श्री रणछोड़ाचार्यजी भूतल पर  जब तक   विराजे आचार्यचरण श्री वल्लभाचार्य जी के सिद्धांतों का प्रचार प्रसार देश एवं विदेशों में करते रहे आपश्री ने समस्त बल्लभीय सृष्टि को श्रीबल्लभ के सिद्धांतों से अवगत कराया बल्कि वल्लभ के सिद्धांतों के प्रचार प्रसार कर रही संस्था अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के द्वारा संस्था सेवा की जाए आपश्री ने सिखाया है 
हम समस्त पुष्टिमार्गीय वल्लभ सेवा केंद्र के सदस्य आपश्री द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का प्रयास करते हैं और आज आप श्री के प्राकट्य उत्सव पर आपश्री को दंडवत करते हुए विनती करते हैं कि सदा आपके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुसार सेवा करते रहें 
समस्त पुष्टिमार्गीय वल्लभ सेवा केंद्र के पदाधिकारियों एवं सदस्यों की की ओर से समस्त बल्लभीय सृष्टि को खूब खूब बधाइयां