एक दिन गुरुकुल के शिष्यों में इस बात पर बहस छिड़ गयी कि आखिर इस संसार की सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है ? कोई कुछ कहता, तो कोई कुछ। जब पारस्परिक विवाद का कोई निर्णय ना निकला तो फिर सभी शिष्य गुरुजी के पास पहुँचे। सबसे पहले गुरूजी ने उन सभी शिष्यों की बातों को सुना और कुछ सोचने के बाद बोले- तुम सबों की बुद्धि खराब हो गयी है। क्या ये अनाप-शनाप निरर्थक प्रश्न कर रहे हो ? इतना कहकर वे वहाँ से चले गए। हमेशा शांत स्वाभाव में रहने वाले गुरु जी से किसी ने इस प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी। सभी शिष्य क्रोधित हो उठे और आपस में गुरु जी के इस व्यवहार की आलोचना करने लगे।
अभी वे आलोचना कर ही रहे थे कि तभी गुरु जी उनके समक्ष पहुँचे और बोले- मुझे तुम सब पर गर्व है, तुम लोग अपना एक भी क्षण व्यर्थ नहीं करते और अवकाश के समय भी ज्ञान चर्चा किया करते हो। गुरु जी से प्रशंसा के बोल सुनकर शिष्य गदगद् हो गए, उनका स्वाभिमान जाग्रत हो गया और सभी के चेहरे खिल उठे। गुरूजी ने फिर अपने उन सभी शिष्यों को समझाते हुए कहा- “मेरे प्यारे शिष्यों ! आज जरूर आप लोगों को मेरा व्यवहार कुछ विचित्र लगा होगा। दरअसल, मैंने ऐसा जानबूझ आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए किया था। देखिये, जब मैंने आपके प्रश्न के बदले में आपको भला-बुरा कहा तो आप सभी क्रोधित हो उठे और मेरी आलोचना करने लगे, लेकिन जब मैंने आपकी प्रशंसा की तो आप सब प्रसन्न हो उठे। पुत्रों, संसार में वाणी से बढ़कर दूसरी कोई शक्तिशाली वस्तु नहीं है। वाणी से ही मित्र को शत्रु और शत्रु को भी मित्र बनाया जा सकता है। ऐसी शक्तिशाली वस्तु का प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति को सोच समझ कर करना चाहिए। वाणी का माधुर्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। गुरूजी की बातें सुनकर शिष्यगण संतुष्ट होकर लौट आए और उस दिन से मीठा बोलने का अभ्यास करने लगे।